News Agency : भारतीय राजनीति को 1990 के दशक में दो ध्रुवीय बनाने और बीजेपी को देश भर में उभारने वाले लालकृष्ण आडवाणी इस बार चुनावी समर से बाहर हैं। उनकी परंपरागत सीट रही गांधीनगर से अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मैदान में हैं। मंगलवार को करीब तीन दशक के लंबे राजनीतिक करियर के बाद पहली बार आडवाणी ने प्रत्याशी के रूप में नहीं बल्कि एक आम वोटर के रूप में मतदान किया। इस दौरान आडवाणी काफी भावुक दिखे।
अहमदाबाद के शाहपुर हिंदी स्कूल में बने मतदान केंद्र पर मंगलवार दोपहर आडवाणी ने वोट डाला। कुछ लोग इस खास और भावुक मौके पर आडवाणी को अपने कैमरे में भी कैद करते दिखे। दरअसल, गुजरात में गांधीनगर की यह सीट 1989 से बीजेपी के कब्जे में रही है। तब पार्टी के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला यहां से जीते थे। 1991 के आम चुनाव में यहां से लाल कृष्ण आडवाणी ने पहली बार जीत दर्ज की थी। इसके बाद यहां से आडवाणी ने half-dozen बार जीत हासिल की।
1996 में जब आडवाणी का नाम हवाला स्कैंडल में आया था तो उन्होंने बेदाग साबित होने तक चुनावी राजनीति से दूर रहने और लोकसभा चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया था। उस वक्त इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी से निवेदन किया गया। उस वक्त वाजपेयी ने लखनऊ के साथ गांधीनगर पर भी विजय का परचम लहराया था। हालांकि बाद में वाजपेयी ने गांधीनगर सीट छोड़ दी थी। इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के विजयभाई पटेल यहां से जीते। 1998 से आडवाणी यहां से सीटिंग सांसद हैं।
उधर, दिलचस्प बात यह भी है कि गांधीनगर से चाहे कोई भी जीते, लेकिन उसके पीछे अमित शाह की मेहनत भी बखूबी रही है। 1996 से ही इस लोकसभा सीट पर बतौर संयोजक वह काम करते रहे हैं। यह शाह ही हैं जिन्होंने इस सीट को बीजेपी नेताओं की जीत के लिए तैयार किया।